Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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अन्योक्तिविलासः
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वे प्रवृत्त हैं । “गजग्रामणी' पद गजकी विशालता और सामर्थ्यशालिताका सूचक है, अर्थात् जिस प्रयत्नमें ऐसा समर्थ गजराज पत्थरकी भाँति रसातलको चला गया। निष्फलप्रयत्न ही नहीं हुआ, प्रत्युत सदाके लिये नष्ट भी हो गया, तब तुम किस गिनतीमें आओगे ?
इस श्लोकमें यह भी ध्वनि निकलती है कि अरे मृगो, श्रितनग अर्थात् ऊँचे पर्वतोंपर वास करने वाले ( उच्चपदस्थ ) होकर भी तुम अगाध नदीकी थाह लेने जा रहे हो अर्थात् नीचे की ओर प्रवृत्त हो रहे हो, यह तुम्हारी मूर्खता ही है। ___ इस पद्यमें अप्रस्तुत मृगों से प्रस्तुत अविवेकी जनोंका तथा गजग्रामणीसे किसी समर्थ व्यक्तिका बोध होता है अतः अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार है । ग्रावा इव यह उपमा भी है। चांचल्यजुषः और ग्रामणी विशेषण साभिप्राय हैं अतः परिकर भी। इस प्रकार इन अलंकारों का सङ्कर हो गया है। शार्दूलविक्रीडित छन्द है ॥५७॥ शत्रुके भी गुणोंपर विचार करना चाहिये--- पिब स्तन्यं पोत त्वमिह मददन्तावलधिया
दृगन्तानाधत्से किमिति हरिदन्तेषु परुषान् । त्रयाणां लोकानामपि हृदयतापं परिहरन्
अयं धीरं धीरं ध्वनति नवनीलो जलधरः ॥५८॥
अन्वय-पोत, त्वम् , इह, स्तन्यं, पिब, मददन्तावलधिया, हरिदन्तेषु, परुषान् , दृगन्तान , किमिति, आधत्से, अयं, नवनीलः, जलधरः, त्रयाणाम् , अपि, लोकानां, हृदयतापं, परिहन , धीरंधीरं, ध्वनति ।
शब्दार्थ-पोत = हे बच्चे ! त्वम् = तुम । इह = यहीं। स्तन्यं
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