Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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भामिनी-विलासे टिप्पणी-बलवान् शत्रुकी कभी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये । सर्वदा उससे सतर्क रहना हो कल्याणकर है, इसी भावको इस अन्योक्तिद्वारा व्यक्त किया गया है। युद्ध होने पर सिंह हाथीको निश्चय ही मार डालेगा, इसलिये उसे परिणामविषम कहा है । ... अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार है। उपगीति छन्द है । इसमें आर्या छन्दके उत्तरार्द्ध के समान अर्थात् १२।१५ मात्राओंका प्रत्येक पाद होता है ॥६२॥ जो कह दिया उससे मुकरना नहीं चाहिये
विदुषां वदनाद्वाचः सहसा यान्ति नो बहिः । याताश्चेन पराश्चन्ति द्विरदानां रदा इव ॥६३॥
अन्वय-वाचः, विदुषां, वदनात् , सहसा, बहिः, नो, यान्ति, याताः, चेत् , द्विरदानां, रदाः, इव, न पराञ्चन्ति ।
शब्दार्थ-विदुषां वदनात्=विट्टानोंके मुखसे । वाचः = शब्द । सहसा = एकाएक । बहिः = बाहर । नो यान्ति = नहीं निकलते । याताश्चेत् = यदि निकल गये तो। द्विरदानां = हाथियोंके । रदा इव = दाँतोंकी तरह । न पराञ्चन्ति = पीछे नहीं लौटते । _____टीका-वाचः = वाक्यानि । विदुषां विपश्चितां (विद्वान् विपश्चिघोषज्ञः-अमरः ) वदनात् = मुखात् । सहसा = झटिति । बहिः । न यान्ति = न निर्गच्छन्तीत्यर्थः । कथंचित् याताः = बहिनिर्गताश्चेत् । द्विरदानां = गजानां । रदाः = दन्ताः । इव । न पराञ्चन्ति= प्रत्यावर्तन्ते । ___ भावार्थ-विद्वान् लोग किसी विषयपर सहसा बोलते ही नहीं, यदि बोलते हैं तो फिर उससे इस तरह पीछे नहीं हटते जैसे हाथीके दाँत ।
टिप्पणी--अन्योक्ति न होने पर भी इस रचनाको यहाँ संगृहीत किया गया है।
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