Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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भामिनी-विलासे इसी भावको इस अन्योक्तिसे व्यक्त किया है। पूर्व श्लोकको भांति इससे भी कविद्वारा विपत्ति कालमें संरक्षण देनेवाले आश्रयदाताकी स्तुति ध्वनित होती है।
इस पद्य में प्रहर्षण अलंकार है। क्योंकि विनाशके समय जहाँ रक्षामान की चम्पकको आवश्यकता थी वहाँ अमृत सींचते हुए तोयदका आविष्कार कर विधाताने उसे और भी सुदृढ़ कर दिया । 'वान्छितादधिकार्थस्य संसिद्धिश्च प्रहर्षणम्' (कुवलया०)। शार्दूलविक्रीडित छन्द है ( लक्षण दे० श्लोक ३ ) ॥२९॥ पुरुषार्थी नहीं रहा तो भय किसकान यत्र स्थेमानं दधुरतिभयभ्रान्तनयनाः
गलदानोद्रेकभ्रमदलिकदम्बाः करटिनः॥ लुठन्मुक्ताभारे भवति परलोकं गतवतो
हरेरद्य द्वारे शिव शिव शिवानां कलकलः ॥३०॥ अन्वय-अतिभयभ्रान्तनयनाः, गलद्दानोद्रेकभ्रमदलिकदम्बाः, करटिनः, यत्र, स्थेमानं, न दधुः, लुठन्मुक्ताभारे, परलोकं, गतवतः, हरेः, द्वारे, अद्य शिव शिव, शिवानां, कलकलः।
शब्दार्थ-अतिभयभ्रान्तनयनाः अत्यन्त डरके कारण घूम रही हैं आँखें जिनकी ऐसे। गलद्दानोद्रेक = बहते मदजलके प्रवाहमें, भ्रमदलिकदम्बाः = धूम रहा है भौंरोंका झुण्ड जिनके ऐसे। करटिनः = हाथी । यत्र = जहाँ । स्थेमानं = स्थिरताको । न दधुः = नहीं धारण कर सके । लुठन् मुक्ताभारे = लुढ़क रहे हैं मोतियोंके ढेर जिसमें ऐसे। परलोकं गतवतः हरेः = मृत्युको प्राप्त सिंहके । द्वारे = ( गुफा ) द्वारपर । अद्य = आज । शिवशिव = हे भगवन् । शिवानां = सियारोंका । कलकल: = हुआं हुआं ध्वनि ( हो रही है)।
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