Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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भामिनी-विलासे
आतिः = पीडा, तस्याः वारणे = दूरीकरणे समर्पितं = दत्तं जीवनं = जलं प्राणाः वा येन एवंभूतः ( जीव्यते अनेन, जीव प्राणधारणे + ल्युट्, जीवनं वर्तते नीरप्राणधारणयोरपि-अमरकोष, रामाश्रमी ) भवता न आकर्णितः किमु = न श्रुतः किम् ? अपि तु श्रुत एव स्यात् इत्यर्थः । ___भावार्थ-हे पथिक ! सामने गरजते हुए मेघकी कठोर गर्जना सुनकर ही भयभीत न हो जाना । क्या तुमने नहीं सुना कि यह मेघ तो दूसरोंकी आति (प्यास या पीड़ा ) निवारण करनेके लिये अपना जीवन ( जल या देह ) भी अर्पण कर देता है । - टिप्पणी-गुण-दोष सभीमें होते हैं । राह चलते किसीके एक दोषको देखकर यह कल्पना नहीं कर लेनी चाहिये कि वह व्यक्ति दुष्ट ही होगा, संभव हो सकता है कि उसमें कोई ऐसा महान् गुण भी हो जिसके सामने दोष नगण्य हो जाय । अर्थात् किसी भी सिद्धान्तके निर्णय तक पहुँचनेके पहले हमें उसके अन्य तथ्योंको भी जान लेना चाहिये। इसी भावको इस पान्थान्योक्ति द्वारा व्यक्त किया है। हे पथिक ! केवल कर्णकटु भीषण गर्जनसे ही इस मेघके भयानक होनेकी कल्पना न कर लो, यह तो इसका साधारणसा दोष है। इसके उस महान् गुणपर भी ध्यान दो जो कि यह दूसरोंके निमित्त अपना जीवन अर्पण कर देता है । जीवनपद श्लिष्ट है।
इस पद्यमें भयभीत न होनेरूप अर्थका समर्थन मेघके परार्थ जीवन अर्पण करने रूप अर्थसे किया गया है, अतः काव्यलिङ्ग अलंकार है। वसन्ततिलका छन्द है ( लक्षण दे० श्लो० १६ ) ॥३५॥ एक भी महान् दोष गुणों को ढक लेता है
सौरभ्यं भुवनत्रयेऽपि विदितं शैत्यं तु लोकोत्तरम् कीर्तिः किं च दिगङ्गनाङ्गणगता किन्त्वेतदेकं शृणु ।
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