Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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अन्योक्तिविलासः
टीकाहे माकन्द = आम्रतरो ! ( आम्रश्चूतो रसालोऽसौ सहकारोथ सौरभः । कामाङ्गो मधुदूतश्च माकन्दः पिकवल्लभ:-अमरः ) मधु पुष्परसं पिबतीति मधुपः = भ्रमरः तेन । परैः=इतरैः काकैरित्यर्थः पोष्यन्ते इति परपुष्टाः = कोकिलाः । पृष्टाः = प्रश्नविषयीकृताः । खलु = निश्चयेन सर्वे = निखिलाः । विटपिनः वृक्षाः ( विटति विटयते वा, /विट आक्रोशे + कपन् (उणादि) विटप: शाखाविस्तारोऽस्ति येषां विटप + इनि, 'वृक्षो महीरुहः शाखी विटपी'-अमरः )। परितः समन्तात् । दृष्टाः = अवलोकिताः । अनुभूता इत्यर्थः । किन्तु तथापि । निखिलेऽपि जगति = संसारे । तव उपमा = त्वत्सादृश्यं तेन न प्रपेदे = न प्राप्ता ।
भावार्थ-हे आम्रवृक्ष ! इस मधुपने अवश्य ही कोकिलोंसे पूछा, समीपवर्ती सभी वृक्षोंको चारों ओरसे देखा, किन्तु तुम्हारे ऐसा इसे कोई दिखाई न दिया । ( इसीसे यह तुम्हें छोड़कर. अन्यत्र नहीं जाता )।
टिप्पणी-गुणोंकी चाहवाला व्यक्ति जब गुणीकी खोज करता है तो उसके निकट सम्पर्कमें रहनेवालोंसे अच्छी प्रकार जानकारी कर लेता है । अन्य गुणवानोंसे उसकी समता या वैशिष्ट्यको समझ लेता है। इसके बाद उसके पास जाता है और जब उसके सत्सङ्गका स्वाद उसे लग जाता है तो फिर उसे छोड़, वह अन्यत्र जानेका नाम भी नहीं लेता। यही भाव इस अन्योक्तिसे व्यक्त होता है। मधुप सम्बोधनसे ही स्पष्ट है कि वह मधुकी चाहवाला है। पूछता है कोकिलोंसे, वे परपुष्ट हैं अतः अवश्य ही सब विषयोंका ज्ञान रक्खेंगे। इसके बाद चारों ओर अन्य वृक्षोंको भी देखता है; किन्तु उसे इस प्रकार मकरन्दसे परिपूर्ण कोई वृक्ष नहीं दीख पड़ता।
प्रणयप्रकाशटीकाकार अच्युतरायने [ मा लक्ष्मीः ब्रह्मविषयिणी प्रमा वा, तस्याः कन्द इव मूलकारणमिव तत्सम्बुद्धौ हे माकन्द ! ब्रह्मविद्याप्रद गुरो ! इत्यर्थः । मधु ब्रह्म पिवतीति मधुपो मुमुक्षुः, तेन । परपुष्टाः = परैः लोकः स्वैहिकादिफलार्थ पुष्टाः पोषिता जना इति शेषः, पृष्टाः परितः सर्वे
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