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बारहभावना : एक अनुशीलन
गौतमबुद्ध के पास कोई वृद्ध महिला अपने इकलौते मृत पुत्र को लेकर पहुँची। उनसे उसे जीवित कर देने का आग्रह करने लगी, अनुरोध करने लगी, विलख - विलख कर रोते हुए प्रार्थना करने लगी ।
बहुत समझाने पर भी जब उसने अपना आग्रह नहीं छोड़ा तो महात्मा बुद्ध ने उससे कहा
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"उस घर से एक मुट्ठी तिल लेकर आओ, जिस घर में आज तक किसी की मृत्यु न हुई हो।''
उस घर की तलाश में अविवेकी वृद्धा बिना विचारे ही दौड़ पड़ी; पर घरघर चक्कर काटने पर भी उसे ऐसा कोई घर न मिला, जिसमें किसी की मृत्यु न हुई हो । मिलता भी कैसे; क्योंकि जगत में ऐसा घर होना संभव ही नहीं है । संसरण (परिवर्तन) का नाम ही तो संसार है । जगत का स्वरूप ही परिवर्तनशील है।
अन्ततोगत्वा थककर वह पुनः बुद्ध के पास पहुँची और अपनी असफलता बताई तो बुद्ध कहने लगे
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"मृत्यु एक अनिवार्य तथ्य है, उसे किसी भी प्रकार टाला नहीं जा सकता। उसे सहज भाव में स्वीकार कर लेने में ही शान्ति है, आनन्द है । सत्य को स्वीकार करना ही सन्मार्ग है । "
अनित्यभावना में भी वस्तु के इसी पक्ष को उभारा जाता है, इसी सत्य से परिचित कराया जाता है, इसी तथ्य को अनेक युक्तियों से उजागर किया जाता है, उदाहरणों से समझाया जाता है।
" राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार ।
मरना सबको एक दिन अपनी-अपनी बार ॥ "
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अनित्यभावना सम्बन्धी उक्त छन्द में भी इसी तथ्य को उजागर किया
गया है ।
१. पंडित भूधरदासजी कृत बारह भावना