Book Title: Barah Bhavana Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 166
________________ १५८ बोधिदुर्लभभावना : एक अनुशीलन बोधिदुर्लभभावना में बोधि की दुर्लभता बताकर उनकी प्राप्ति के लिए सतर्क किया जाता है और सुलभता बताकर उसके प्रति अनुत्साह को निरुत्साहित किया जाता है। इसप्रकार हम देखते हैं कि बोधिदुर्लभभावना के चिन्तन में दोनों पक्ष समानरूप से उपयोगी हैं, आवश्यक हैं, एक-दूसरे के पूरक हैं। . प्रश्न : बोधिदुर्लभभावना में कहीं-कहीं संयोगों को सुलभ भी तो बताया गया है; क्योंकि वे अनन्तबार प्राप्त हो चुके हैं, जैसा कि निम्नांकित छन्द से स्पष्ट है - 'अन्तिम ग्रीवक लों की हद, पायो अनन्त बिरियाँ पदा' - और कहीं-कहीं उन्हें महादुर्लभ भी बताया गया है। जैसा कि सर्वार्थसिद्धि के उद्धरण से स्पष्ट है; जिसमें बताया गया है कि सपर्याय, पंचेन्द्रियपना, मानवजीवन, आर्यदेश और वीतरागधर्म की प्राप्ति उत्तरोत्तर महादुर्लभ है। वास्तविक स्थिति क्या है - संयोग सुलभ हैं या दुर्लभ? उत्तर : भाई! जिसप्रकार विभिन्न अपेक्षाओं से बोधिलाभ सुलभ भी है, दुर्लभ भी; उसीप्रकार संयोग भी किसी अपेक्षा सुलभ है और किसी अपेक्षा दुर्लभ। अनन्तबार प्राप्त हो चुके हैं, इसलिए सुलभ ही हैं, सुलभ कहना अनुचित नहीं है; पर अपनी इच्छानुसार मिलना संभव न होने से महादुर्लभ भी हैं, दुर्लभ कहना भी असंगत नहीं है। चित्त में जमी संयोगों की अनन्त महिमा कम करने के लिए 'उन्हें अनन्तबार भोग लिये' - कहकर सुलभ कहा जाता है, उनसे विरक्ति उत्पन्न की जाती है और आत्माराधना की प्रेरणा देने के लिए आत्माराधना के अनुकूल संयोगों की दुर्लभता का ज्ञान भी कराया जाता है। इसप्रकार हम देखते हैं कि बोधिदुर्लभभावना में संयोगों की सुलभता व दुर्लभता एवं बोधिलाभ की सुलभता व दुर्लभता- चारों ही चिन्तन किया जाता १. पण्डित दौलतरामजी : छहढाला; चतुर्थ ढाल, छन्द १३

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