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अभिमत मुनिराजों, व्रतियों, विद्वानों एवं लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाओं
की दृष्टि में प्रस्तुत प्रकाशन अध्यात्मयोगी मुनि श्री विजयसागरजी महाराज
'बारहभावना : एक अनुशीलन' बहुत ही खोजपूर्ण, शास्त्रों का सार निकालकर सुन्दर ढंग से लिखी गई पुस्तक है।डॉ. भारिल्ल ने पद्यमय स्वरचित बारहभावना में
"मैं ध्येय हूँ, श्रद्धेय हूँ, मैं ज्ञेय हूँ, मैं ज्ञान हूँ।
बस एक ज्ञायक भाव हूँ मैं, मैं स्वयं भगवान हूँ॥ ऐसा लिखकर सभी मनुष्य आत्मानुभूति प्राप्त करें - ऐसी भावना व्यक्त की है।" मेरे विचार भी ऐसे ही हैं कि इस "बारहभावना : एक अनुशीलन" के रहस्य को समझकर सभी आत्मार्थी आत्मानुभूति प्राप्त करें। तभी इस पुस्तक का प्रकाशन सार्थक होगा। ब्र. पं. मुन्नालालजी रांघेलीय 'वर्णी' न्यायतीर्थ, सागर (म. प्र.)
बारहभावना पुस्तक अति आकर्षक व उपयोगी है। पुस्तक की प्रमुख नवीनता यह है कि विद्वान लेखक ने त्याज्य विषयों की बुराई न बताकर आत्मा की भलाई एवं महत्ता दर्शाई है। ब्र. पण्डित श्री माणिकचन्दजी चंवरे, न्यायतीर्थ, कारंजा (महाराष्ट्र) ____अत्यन्त उपयोगी इस सम्पूर्ण कृति को आद्योपान्त गहराई से पढ़ा। इसमें पूर्व आचार्यों द्वारा प्रणीत तथ्यों का समावेश है। पद्यरचना भी रसपूर्ण सुश्लिष्ट एवं सर्वंकष है। सम्पूर्ण कृति आगम के आधार पर होते हुए भी इसमें स्वतन्त्र चिन्तन भी प्रस्तुत हुआ है। ब्र. श्री यशपालजी जैन, एम.ए., जयपुर (राजस्थान) ___'बारहभावना : एक अनुशीलन' बहुत ही उपयोगी कृति है। प्रत्येक अनुप्रेक्षा की स्वतन्त्र पद्य रचना इसकी प्रमुख विशेषता है। हिन्दी साहित्य में रचित अनुप्रेक्षाओं के भी इसमें मर्मस्थल अंकित किए गए हैं। डॉ. भारिल्ल की अन्य कृतियों के समान इसका भी अन्य भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए।