Book Title: Barah Bhavana Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 184
________________ १७६ अभिमत डॉ. पन्नालालजी जैन, साहित्याचार्य, सागर (म.प्र.) 'बारहभावना : एक अनुशीलन' आत्महितैषियों के लिए उत्तम ग्रंथ है। डॉ. भारिल्ल के द्वारा लिखित प्रत्येक भावना की पद्य रचना, उनका हिन्दी गद्य में रूपान्तर और उसके बाद विशद विवेचन किया गया है। भाव को स्पष्ट करने के लिए अनेक ग्रंथों के उद्धरण दिए गए हैं। भाव और भाषा - दोनों पर लेखक का अधिकार है। मुखपृष्ठ का चित्र बड़ा ही भावपूर्ण है। इसमें डॉ. भारिल्ल ने प्रारंभ की छह भावनाओं का वैराग्यपरक एवं शेष छह भावनाओं को तत्त्वपरक बताया है, जो संगत लगता है। डॉ. राजारामजी जैन, ह.द. जैन डिग्री कॉलेज, आरा (बिहार) गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस ने जिसप्रकार वाल्मीकि रामायण को तथा प्राचीन हिन्दी की बारहभावनाओं ने जिसप्रकार आचार्य कुन्दकुन्द एवं स्वामिकार्तिकेय द्वारा प्राकृत भाषा में लिखित द्वादशानुप्रेक्षाओं को सामान्य पठन-पाठन से दूर कर दिया; उसीप्रकार डॉ. हुकमचंद भारिल्ल की बारहभावनाएँ भी पूर्व प्रचलित हिन्दी बारह भावनाओं को सामान्य पठन-पाठन से कहीं दूर न कर दें? क्योंकि डॉ. भारिल्ल की सुघड़ एवं सन्तुलित लेखनी ने वैदर्भी शैली में गेय पदों में बारहभावनाओं का ग्रंथन कर अध्यात्म-जगत को एक भावपूर्ण नवीन मौलिक कृति प्रदान की है। साथ में तुलनात्मक विश्लेषण संयुक्त कर आत्मशोधकों एवं दर्शन के अनुसन्धित्सुओं के लिए भी एक सबल सम्बल प्रदान किया है। इतिहासरत्न डॉ. ज्योतिप्रसादजी जैन, लखनऊ (उ.प्र.) यह खोजपूर्ण निबंध उत्तम, मननीय एवं उपयोगी है। बारहभावनाओं का क्रमशः विवेचन बड़ा ही प्रभावक है। डॉ. भारिल्ल द्वारा रचित प्रत्येक भावना के छन्द भी पुरातन भावना साहित्य में उत्तम योगदान है। आध्यात्मिक विचारों के प्रवार में डॉ. भारिल्ल का प्रभूत योगदान प्रशंसनीय है। डॉ. देवेन्द्रकुमारजी शास्त्री, शा. महाविद्यालय, नीमच (म.प्र.) विद्वान लेखक ने बारहभावनाओं का अनुशीलन कर संयोगी सम्बन्धों तथा पर्यायों में आसक्त पामर जनों की दृष्टि को सम्यक् बनाने के लिए यथार्थ वर्णन किया है।

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