Book Title: Barah Bhavana Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 187
________________ बारहभावना : एक अनुशीलन १७९ श्री यशपालजी जैन, सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली बारहभावनाओं का अनुशीलन कर डॉ. भारिल्ल ने प्रत्येक भावना को इतना सरल कर दिया है कि सामान्य पढ़ा-लिखा जिज्ञासु भी उसे आसानी से समझ सकता है। इस कृति ने निश्चय ही विषय-वस्तु को गहराई से समझने और हृदयंगम करने को प्रोत्साहित किया है। वाणीभूषण पण्डित ज्ञानचंदजी जैन, विदिश (म.प्र.) __अनेक भावनाओं के मंथन स्वरूप डॉ. भारिल्लजी ने एक ऐसी पुस्तक तैयार कर दी है, जिसके बार-बार मनन करने से हृदय में वैराग्य की हिलोरें उठती रहती हैं। पुरातत्वविद् श्री नीरज जैन, सतना (म.प्र.) भाई हुकमचंद भारिल्ल ने इस छोटी-सी पुस्तक में बारहभावनाओं के सभी कवियों की वाणी का संकलन तो किया ही है, अपनी स्वरचित कविता द्वारा भी उसकी उपयोगिता बढ़ाई है। इन पद्यों का जो हिन्दी सरलार्थ किया गया है, वह डॉ. भारिल्ल की अपनी विशेषता है। यह बारहभावना जन-जन का कण्ठहार बने - ऐसी मेरी भावना है। श्री बी. टी. बेडगे, एम. ए., बी.एड., बाहुबली (महाराष्ट्र) डॉ. भारिल्ल की अनुपम कृति 'बारहभावना : एक अनुशीलन' आगम का मंथन करके निकाला हुआ अमृत है। विषय-वस्तु को हृदयंगम कराने की भारिल्लजी की शैली अद्भुत है। आचार्य योगीश, पा. वि. शोध संस्थान, वाराणसी (उ.प्र.) कृति का समस्त सार 'अंजुली जल सम जवानी क्षीण होती जा रही' इस पंक्ति तथा मुखपृष्ठ के चंचल जवानी से वृद्धावस्था तक के चित्रों में तरंगायित हो उठा है। पुस्तक की भाषा सरल, सुबोध होने के साथ-साथ सहज गम्य है। पण्डित प्रकाशचंद हितैषी' शास्त्री, सम्पादक-सन्मति संदेश, दिल्ली उक्त कृति में बारहभावनाओं का मूल उद्देश्य, उसकी अन्तर्भावना और इसके अन्तर्गत छिपे हुए रहस्य को उद्घाटित किया है। इसे जयचंदजी छाबड़ा कृत बारहभावनाओं के समकक्ष कहने में कोई अत्युक्ति नहीं होगी।

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