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संसारभावना : एक अनुशीलन
उक्त छन्द में इसी तथ्य को सशक्तरूप से उजागर किया गया है कि सम्पूर्ण जगत को छान मारा, पर संयोगों में कहीं सुख दिखाई नहीं दिया। यदि निर्धन धन के अभाव में दुःखी हैं तो धनवान भी कहाँ सुखी हैं? वे भी तो तृष्णावश होकर दुःखी ही दिखाई देते हैं। ___ संसरण ही संसार है और चतुर्गति-परिभ्रमण का नाम ही संसरण है। जिनागम में सर्वत्र चतुर्गति के दुःखों का ही वर्णन है । जैनसमाज में सर्वाधिक पढ़े जानेवाले कविवर पंडित दौलतरामजी कृत सरल, सरस, सुबोध ग्रन्थ छहढाला का तो आरम्भ ही चतुर्गति-वर्णन से होता है; उसकी तो पहली ढाल में ही चतुर्गति के दुःखों का विस्तार से निरूपण किया गया है, जो कि मूलतः पठनीय है।
उक्त छहढाला की पंचम ढाल में समागत संसारभावना सम्बन्धी छन्द इसप्रकार है -
"चहुँगति दुख जीव भरे हैं, परिवर्तन पंच करे हैं।
सब विधि संसार असारा, यामैं सुख नाहिं लगारा॥ चारों गतियाँ दुःखी जीवों से ही भरी पड़ी हैं। तात्पर्य यह है कि पंचपरावर्तनों के माध्यम से चतुर्गति में भ्रमण करनेवाले सभी जीव दुःखी ही हैं, चारों गतियों में कहीं भी सुख नहीं है। यह चतुर्गति-भ्रमण रूप संसार सर्वप्रकार से असार है; इसमें रंचमात्र भी सुख नहीं है, सार नहीं है।"
प्रतिकूल संयोगों को दूरकर एवं अनुकूल संयोगों को मिलाकर सुखी होने की दिशा में किये गये किसी के भी प्रयत्न न तो आजतक सफल हुए हैं और न कभी होंगे; अतः संयोगों पर से दृष्टि हटा लेने में ही सार है, शेष सब संसार है।
सुख की लालसा से संयोगों की ओर देखनेवाले जगत को इस बात का विचार करना, चिन्तन करना, मंथन करना अत्यन्त आवश्यक है कि जिन संयोगों के लिए तू इतना लालायित हो रहा है, जिन्हें जुटाने के लिए सबकुछ