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बोधिदुर्लभभावना इन्द्रियों के भोग एवं भोगने की भावना । हैं सुलभ सब दुर्लभ नहीं है इन सभी का पावना ।। है महादुर्लभ आत्मा को जानना पहिचानना ।
है महादुर्लभ आत्मा की साधना आराधना ॥१॥ पंचेन्द्रियों के भोग एवं उन्हें भोगने की भावना का प्राप्त होना दुर्लभ नहीं, सुलभ ही है; पर आत्मा को जानना, पहिचानना एवं आत्मा की साधना और आराधना महादुर्लभ है।
नर देह उत्तम देश पूरण आयु शुभ आजीविका । दुर्वासना की मंदता परिवार की अनुकूलता ॥ सत् सजनों की संगती सद्धर्म की आराधना ।
है उत्तरोत्तर महादुर्लभ आत्मा की साधना ॥२॥ मनुष्यभव की प्राप्ति होना, उत्तम आर्य देश में जन्म होना, परिपूर्ण आयु की प्राप्ति होना, न्यायोपात्त अहिंसक आजीविका के साधन उपलब्ध होना, दुर्वासनाओं का मन्द होना, धर्मानुकूल परिजनों की प्राप्ति होना, सत्य पदार्थ और सज्जनों की संगति प्राप्त होना, सद्धर्म की आराधना के भाव होना एवं आत्मा की साधना करने की वृत्ति होना क्रमशः एक से एक महादुर्लभ हैं।