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बारहभावना : एक अनुशीलन
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हटाकर देवेन्द्रादि सम्बन्धी पुण्य का सुख होता है, तत्पश्चात् परम्परा से मोक्ष
की भी प्राप्ति होती है। ___ मोक्षपाहुड़ गाथा २३ में भी कहा है कि तप करने से स्वर्ग तो सभी प्राप्त करते हैं, परन्तु ध्यान के योग से जो स्वर्ग प्राप्त करता है, वह आगामी भव में अक्षय सुख प्राप्त करता है।
इसप्रकार एकत्वभावना का फल जानकर निज शुद्धात्मा के एकत्व की भावना निरन्तर करना चाहिए।"
बारह भावनाओं के चिन्तन की एक आवश्यक शर्त यह है कि उसके चिन्तन से आनन्द की जागृति होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो समझना चाहिए कि कहीं कुछ गड़बड़ अवश्य है। ___ 'अकेले ही मरना होगा, अकेले ही पैदा होना होगा, सुख-दुःख भी अकेले ही भोगना होगा' - इसप्रकार के चिन्तन से यदि खेद उत्पन्न होता है तो हमें अपनी चिन्तन-प्रक्रिया पर गहराई से विचार करना चाहिए। यदि हमारी चिन्तन-प्रक्रिया की दिशा सही हो तो आह्लाद आना ही चाहिए।
जरा गहराई से विचार करें तो सब-कुछ सहज ही स्पष्ट हो जावेगा।
आपको यह शिकायत है कि सुख-दुःख, जीवन-मरण सब-कुछ आपको अकेले ही भोगने पड़ते हैं; कोई सगा-सम्बन्धी भी साथ नहीं देता। क्या आपकी यह शिकायत उचित है?
जरा इस पर गौर कीजिये कि कोई साथ नहीं देता है या दे नहीं सकता? वस्तुस्वरूप के अनुसार जब कोई साथ दे ही नहीं सकता है, तब 'साथ नहीं देता'-यह प्रश्न ही कहाँ रह जाता है? ___ जब हम ऐसा सोचते हैं कि कोई साथ नहीं देता तो हमें द्वेष उत्पन्न होता है; पर यदि यह सोचें कि कोई साथ दे नहीं सकता तो सहज ही उदासीनता उत्पन्न होगी, वीतरागभाव जागृत होगा।
१. वृहद्रव्यसंग्रह : गाथा ३५ की टीका, पृष्ठ १२५-१२६