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निर्जराभावना
शुद्धातमा की रुची संवर साधना है निर्जरा । ध्रुवधाम निज भगवान की आराधना है निर्जरा ॥ निर्मम दशा है निर्जरा निर्मल दशा है निर्जरा ।
निज आतमा की ओर बढ़ती भावना है निर्जरा ॥ १ ॥
शुद्धात्मा की रुचि संवर और शुद्धात्मा की साधना निर्जरा है। वास्तव में देखा जाय तो ध्रुवधाम निज भगवान आत्मा की आराधना ही निर्जरा है। ममता रहित निर्मल दशा ही निर्जरा है। इसीप्रकार निज आत्मा की ओर नित्य वृद्धिंगत भावना ही निर्जरा है ।
वैराग्यजननी राग की विध्वंसनी है निर्जरा । है साधकों की संगिनी आनन्दजननी निर्जरा ॥ तप त्याग की सुख-शान्ति की विस्तारनी है निर्जरा । संसार पारावर पार उतारनी है निर्जरा ॥ २ ॥
निर्जरा राग का नाश करनेवाली और वैराग्य को उत्पन्न करनेवाली है। यह आनन्द को उत्पन्न करनेवाली माँ और साधक जीवों की जीवन संगिनी प्रिय पत्नी है । यह निर्जरा तप और त्याग, सुख और शान्ति का विस्तार करनेवाली है, संसाररूप महासागर से पार उतारनेवाली नौका है।
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