________________
बारहभावना : एक अनुशीलन
३७
स्वर्ग जिसका किला है, देव जिसके भृत्य हैं, वज्र जिसका हथियार है, ऐरावत हाथी जिसका वाहन है - ऐसे इन्द्र को भी कोई शरण नहीं है।
इसीप्रकार काल के आ जाने पर नव निधियाँ, चौदह रत्न, चंचल घोड़े और मदोन्मत्त हाथी तथा सुसज्जित चतुरंग सेना भी चक्रवर्ती को शरण नहीं दे पाते; तब साधारणजन को कौन शरण दे ? ___ तात्पर्य यह है जिसके पास सुरक्षा के इतने और इसप्रकार के साधन हैं, जब उसे भी समय आने पर देह छोड़नी ही पड़ती है, तब सामान्यजन की क्या विसात है?"
इसप्रकार हम देखते हैं कि अशरणभावना में संयोगों और पर्यायों की क्षणभंगुरता का, अशरणता का गहराई से बोध कराया जाता है। ___ यहाँ एक प्रश्न संभव है कि पर्यायों की क्षणभंगुरता का बोध तो अनित्यभावना के चिन्तन में बहुत गहराई से करा दिया गया था। इस अशरणभावना में क्या नई बात है ?
अनित्यभावना और अशरणभावना में मूलभूत अन्तर क्या है ?
अनित्यभावना में संयोगों और पर्यायों के अनित्यस्वभाव का चिन्तन होता है और अशरणभावना में उनके ही अशरणस्वभाव का चिन्तन किया जाता है। अनित्यता के समान अशरणता भी वस्तु का स्वभाव है। जिसप्रकार अनित्यस्वभाव के कारण प्रत्येक वस्तु परिणमनशील है, नित्य परिणमन करती है; उसीप्रकार अशरणस्वभाव के कारण किसी वस्तु को अपने परिणमन के लिए पर की शरण में जाने की आवश्यकता नहीं है। पर की शरण की आवश्यकता परतंत्रता की सूचक है, जबकि प्रत्येक वस्तु पूर्णत: स्वतंत्र है। __ अशरण का अर्थ है असहाय। जिसे पर की सहायता की - शरण की आवश्यकता नहीं; वस्तुतः वही असहाय है, अशरण है। आचार्य पूज्यपाद ने इसी अर्थ में केवलज्ञान को असहाय ज्ञान कहा है। जिस ज्ञान को पदार्थों के जानने में इन्द्रिय, आलोक आदि किसी की भी सहायता की आवश्यकता नहीं होती, उसे असहाय ज्ञान या केवलज्ञान कहते हैं। १. सर्वार्थसिद्धि; अध्याय १, सूत्र ९ को टीका