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(२) सूत्र पाहुड़ गाथा- अरहंतभासियत्थं गणधरदेवेहिं गंथियं सम्मं ।
सुत्तत्थमग्गणत्थं सवणा साहंति परमत्त्थं ॥१॥ छाया- अहंभाषितार्थ गणधरदेवैः प्रथितं सम्यक् ।
सूत्रार्थमार्गणार्थ श्रमणाः साधयन्ति परमार्थम् ॥१॥ अर्थ-जो अरहन्त देव के द्वारा कहा गया है, गणधरादि देवों से भलीभांति रचा
गया है और सूत्र का अर्थ जानना ही जिसका प्रयोजन है, ऐसे सूत्र के द्वारा मुनि मोक्ष का साधन करते हैं ॥१॥
गाथा- सुत्तम्मि जं सुदिढे पाइरियपरंपरेण मग्गेण ।
णाऊण दुविह सुत्तं वट्टा सिवमग्ग जो भव्वो ॥२॥ छाया- सूत्रे यत् सुदृष्टं आचार्यपरम्परेण मार्गेण ।
.....ज्ञात्वा द्विविधं सूत्रं वर्तते शिवमार्गे यः भव्यः ॥२॥ अर्थ-सर्वज्ञभाषित द्वादशांग सूत्र में आचार्यों की परम्परा से जो कुछ बताया गया
है उस शब्द और अर्थरूप दो प्रकार के सूत्र को जानकर जो मोक्षमार्ग में लगता है वही भव्य जीव है।॥२॥