Book Title: Ashtpahud
Author(s): Parasdas Jain
Publisher: Bharatvarshiya Anathrakshak Jain Society

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Page 118
________________ ... [१०] अर्थ-क्रियावादी मिथ्यादृष्टियों के १८०, अक्रियावादियों के ८४, अज्ञानियों के ६७ और वैनयिकों के ३२ भेद होते हैं । इस प्रकार कुल ३६३ मिथ्यामत संसार में प्रचलित हैं ॥ १३७॥ गाथा-ण मुयइ पयडि अभव्वो सुटठुवि पायरिणऊण जिणधम्म । गुडदुद्धं पि पिवंता ण पएणया णिव्विसा होति ॥ १३८ ॥ छाया-न मुञ्चति प्रकृतिमभव्यः सुष्टु अपि आकर्ण्य जिनधर्मम् । __ गुडदुग्धमपि पिवन्तः न पन्नगाः निर्विषाः भवन्ति ॥ १३८॥ अर्थ-अभव्य जीव जिनधर्म को अच्छी तरह सुनकर भी अपनी प्रकृति अर्थात् मिथ्यात्व को नहीं छोड़ता है। जैसे गुड़ मिला दूध पीने पर भी सर्प बिष रहित नहीं होते हैं ॥ १३८॥ गाथा-मिच्छत्तछएणदिट्ठी दुद्धीए दुम्मएहिं दोसेहिं । धम्म जिणपएणत्तं अभव्वजीवो ण रोचेदि ॥ १३६ ॥ ___ छाया-मिथ्यात्वछन्नदृष्टिः दुर्धिया दुर्मतैः दोषैः। धर्म जिनप्रज्ञप्तं अभव्यजीवः न रोचयति ॥ १३६ ॥ अर्थ-मिथ्यात्व परिणाम से जिसकी ज्ञान दृष्टि ढकी हुई है, ऐसा अभव्य जीव मिथ्यामतरूपी दोषों से उत्पन्न हुई मिथ्याबुद्धि के कारण जिनेन्द्र भगवान् के उपदेश किए हुए धर्म का श्रद्धान नहीं करता है । १३६ ॥ गाथा-कुच्छियधम्मम्मिरओ कुच्छियपासण्डिभत्तिसंजुत्तो। • कुच्छियतवं कुणंतो कुच्छियगइभायणं होई ॥ १४० ॥ ___ छाया-कुत्सितधर्मे रतः कुत्सितपाषण्डिभक्तिसंयुक्तः। कुत्सिततपः कुर्वन् कुत्सितगतिभाजनं भवति ।। १४० ।। अर्थ-जो जीव निन्दित धर्म में लीन है, निन्दित पाषण्डी ( ढोंगी) साधुओं की भक्ति करता है और निन्दित (अज्ञानरूप) तप करता है वह खोटी गति का पात्र होता है॥१४०॥

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