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गाथा - जो कोडिए जिप्पई सुहडो संगामएहिं सव्वेहिं । सो किंपि इक्कि गरेर संगामए सुहडो ||२२||
छाया - यः कोट्या न जीयते सुभटः संग्रामकैः सर्वैः I स किं जीयते एकेन नरेण संग्रामे सुभटः ||२२||
अर्थ - जो योद्धा लड़ाई में करोड़ योद्धाओं से भी नहीं जीता जाता, क्या वह एक मनुष्य से जीता जा सकता है अर्थात् नहीं ||२२||
गाथा - सग्गं तवेण सव्वो वि पावए किंतु भाणजोए । जो पावइ सो पावइ परलोये सासयं सोक्खं ॥ २३ ॥
छाया - स्वर्गं तपसा सर्वः अपि प्राप्नोति किन्तु ध्यानयोगेन । यः प्राप्नोति सः प्राप्नोति परलोके शाश्वतं सौख्यम् ॥
अर्थ-तप के द्वारा तो सब ही स्वर्ग प्राप्त करते हैं, किन्तु जो ध्यान के द्वारा स्वग प्राप्त करता है वह परलोक में अविनाशी सुखरूप मोक्ष को पाता है ।। २३ ॥
- इसोहरणजोएणं सुद्धं हेमं हवेइ जह तह य । कालाईलद्धीए अप्पा परमप्प होई || २४ ॥
गाथा
छाया - प्रतिशोभनयोगेन शुद्धं हेम भवति यथा तथा च । कालादिलच्या आत्मा परमात्मा भवति ।। २४ ॥
अर्थ- जैसे शोधने की सुन्दर सामग्री के सम्बन्ध से सुवर्ण पाषाण शुद्ध सोना बन जाता है, वैसे ही द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव आदि के सम्बन्ध से संसारी आत्मा परमात्मा हो जाता है ।। २४ ।।
गाथा - वर वयतवेहिं सग्गो मा दुक्खं होउ गिरइ इयरेहिं । छायातवट्ठियासां पडिवालंताण गुरुभेयं ।। २५ ।।
छाया—वरं व्रततपोभिः स्वर्गः मा दुःखं भवतु नरके इतरैः । छायातपस्थितानां प्रतिपालयतां गुरूभेदः ॥ २५ ॥
अर्थ- व्रत और तप से स्वर्ग प्राप्त होना उत्तम है तथा अत्रत और
तप से नरक में दुःख प्राप्त होना ठीक नहीं है। जैसे छाया और धूप में बैठने वालों में