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[ ५६ ] अर्थ- हे मुनिश्रेष्ठ ! तुम अनेक माताओं के अपवित्र, घिनावने और पापरूप मल
से मलिन गर्भ स्थानों में बहुत समय तक रहे हो ॥ १७॥
गाथा-पीओसि थणच्छीरं अणंतजम्मतराई जणणोणं ।
अण्णण्णाण महाजस सायरसलिलादु अहियपरं ॥ १८ ॥ छाया-पीतोऽसि स्तनक्षीरं अनन्तजन्मान्तराणि जननीनाम् ।
अन्यासामन्यासां महायशः ! सागरसलिलादधिकतरम् ॥ १८ ॥ अर्थ-हे महायश वाले मुनि ! तुमने अनन्त जन्मों में भिन्न २ माताओं के स्तन
का दूध इतना अधिक पीया कि यदि वह इकठ्ठा किया जाय तो समुद्र के जल से भी बहुत अधिक हो जाय ॥
गाथा-तुह मरणे दुक्खेण अएणण्णाणं अणेयजणणीणं ।
रूपणाण णयणणीरं सायरसलिलादु अहिययरं ॥ १६ ॥
छाया-तव मरणे दुःखेन अन्यासामन्यासां अनेकजननोनाम ।
रूदितानां नयननीरं सागरसलिलात्तु अधिकतरम् ।। १६ ॥ अर्थ- हे मुनि ! तुम्हारे मरने के दुःख से भिन्न २ जन्मों में भिन्न २ माताओं के
रोने से उत्पन्न आंखों के आंसू यदि इन? किये जायं तो समुद्र के जल से भी अनन्तगुणे हो जायं ॥ १६ ॥
गाथा - भवसायरे अणंते छिएणुझियकेसणहरणालट्ठी ।
पुंजइ जइ कोवि जए हवदि य गिरिसमधिया रासी ॥ २० ॥ छाया- भवसागरे अनन्ते छिन्नोज्झितकेशनखरनालास्थीनि ।
पुञ्जयति यदि कोऽपि देवः भवति च गिरिसमधिका राशिः ॥ २० ॥ अर्थ-- हे मुनि ! इस अनन्त संसार समुद्र में तुम्हारे शरीर के कटे और छोड़े हुए
बाल, नाखून, नाल और हड्डी आदि को यदि कोई देव इकट्ठा करे तो मेरू पर्वत से ऊंचा ढेर जाय ॥२०॥