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[ ४२] अर्थ-तेरहवें गुणस्थान में योगसहित केवल ज्ञानी अरहन्त होता है । उसके
स्पष्टरूप से ३४ अतिशय रूप गुण और ८ प्रातिहार्य होते हैं । इस तरह गुणस्थान की अपेक्षा अरहन्त की स्थापना जानना ॥
गाथा- गइ इंदियं च काए जोए वेए कसाय णाणे य ।
संजम दसण लेस्सा भविया सम्मत्त सएिण आहारे ॥ ३३ ॥ छाया- गतौ इन्द्रिये काये योगे वेदे कषाये ज्ञाने च ।
संयमे दर्शने लेश्यायां भव्यत्वे सम्यक्त्वे संज्ञिनि आहारे ॥ ३३ ॥ अर्थ - गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व
सम्यक्त्व, संज्ञी और आहार इन १४ मार्गणाओं में अर्हन्त की स्थापना जाननी चाहिये ॥३३॥
गाथा- आहारो य सरीरो इंदियमणाणपाणभासा य ।।
पज्जत्तिगुणसमिद्धो उत्तमदेवो हवइ अरहो ॥३४॥ छाया- आहारः च शरीरं इन्द्रियं मनः भानप्राणः भाषा च ।
पर्याप्तिगुणसमृद्धः उत्तमदेवः भवति अर्हन् ॥ ३४ ॥ अर्थ- आहार, शरीर, इन्द्रिय, मन, श्वासोच्छवास और भाषा इन ६ पर्याप्तिरूप
गुणों से परिपूर्ण उत्तमदेव अरहन्त होता है। यह पर्याप्ति की अपेक्षा अर्हन्त को स्थापना है ॥ ३४॥
गाथा-पंचवि इंदियपाणा मणवयकारण तिएिण बलपाणा।
आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण होंति दह पाणा ॥ ३५॥
छाया-पंच पि इन्द्रियप्राणाः मनोवचनकायैः त्रयो बलप्राणाः ।
आनप्राणप्राणाः आयुष्कप्राणेन भवन्ति दश प्राणाः ॥ ३५॥ अर्थ- स्पर्शनादि पांच इन्द्रिय, मन वचन काय तीन बल, आयु और श्वासो
च्छवास ये १० प्राण होते हैं । इस तरह प्राण की अपेक्षा अर्हन्त की स्थापना है।