________________
[ १२ ]
सुत्तम्मि जारणमाणो भवस्स भ वरणासगं च सो कुणदि । सूई जहा अत्ता खासदि सुत्ते सहा गोवि ॥ ३ छाया - सूत्रे ज्ञायमानः भवस्य भवनाशनं च सः करोति । सूची यथा सूत्रा नश्यति सूत्रेण सह नापि ॥ ३ ॥
गाथा
अर्थ - जो पुरुष सूत्र के जानने में चतुर है, वह बिना डोरे की सुई नष्ट हो जाती होती है ॥ ३ ॥
संसार का नाश करता है । जैसे और डोरे वाली सुई नष्ट नहीं
गाथा - पुरिसो वि जो ससुत्तो ण विणासइ सो गयो वि संसारे सच्चेयणपश्चक्खं खासदि तं सो श्रदिस्समाणो वि ॥ ४ ॥
छाया - पुरुषोऽपि यः ससूत्रः न विनश्यति स गतोऽपि संसारे । स्वचेतनप्रत्यक्षेण नाशयति तं सः श्रदृश्यमानोऽपि ॥ ४ ॥
अर्थ - जिसको अपना स्वरूप दृष्टिगोचर नहीं है, वह पुरुष द्वादशांग सूत्र का ज्ञाता द्वारा आत्मा का अनुभव करता है । इसलिये होता, किन्तु वह स्वयं प्रगट होकर संसार का
होकर स्वसंवेदन प्रत्यक्ष के वह गत अर्थात् नष्ट नहीं नाश करता है ॥ ४ ॥
गाथा - सूत्तत्थं जिणभणियं जीवाजीवादिबहुविहं प्रत्थं । हेयायं च तहा जो जाइ सोहु सहिट्ठी ||५|| छाया -- सूत्रार्थं जिनभणितं जीवाजीवादि बहुविधमर्थम् । हेयायं च तथा यो जानाति स हि सद्दृष्टिः ॥५॥
अर्थ- जो पुरुष जिनेन्द्र भाषित सूत्र के अर्थ को, जीवाजीवादि बहुत प्रकार के पदार्थों को और इनमें त्यागने और न त्यागने योग्य पुद्गल और जीव के स्वरूप को जानता है वही वास्तव में सम्यग्दृष्टि है | ॥५॥
गाथा - जं सूतं जिउन्तं वबहारो तह य जाण परमत्थो । तं जाणिकरण जोई लहइ सुहं खबइ मलपंजं ॥६॥ छाया - यत्सूत्रं जिनोक्तं व्यवहारं तथा च जानीहि परमार्थम् । तत् ज्ञात्वा योगी लभते सुखं क्षिपते मलपु'जम् ॥६॥