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[ २६ ] गाथा- थूले तसकायवहे थूले मोसे अदत्तथूले य । ..
परिहारो परमहिला परिलगहारंभ परिमाणं ।। २४ ॥ : छाया- स्थूले त्रसकायवधे स्थूलायां मृषायां अदत्तस्थूले च ।
परिहारः परमहिलायां परिग्रहारंभपरिमाणम् ॥ २४ ॥ अर्थ-वस जीवों के घातरूप स्थूल हिंसा का त्याग सो अहिंसाणुव्रत है.। स्थूल झूल
का त्याग सो सत्याणुव्रत है । स्थूल चोरो का त्याग सो अचौर्याणुव्रत है । परस्त्री का त्याग सो ब्रह्मचर्याणुव्रत है। तथा परिग्रह और आरम्भ का परि. माण सो परिग्रहापरिमाणाणुव्रत है। ये पांच अणुव्रत हैं ॥ २४ ॥
गाथा- दिसिविदिसमाण पढमं अणत्थदंडस्स वजणं विदियं ।
. भोगोपभोगपरिमा इयमेव गुणव्वया तिरिण ॥२५॥ छाया- दिग्विदिसिमानं मथमं. अनर्थदण्डस्य वर्जनं द्वितीयम् ।।
भोगोपभोगपरिमाणं इमान्येव गुणवतानि त्रीणि ॥ २५ ॥ अर्थ-दिशा विदिशा में गमन का परिमाण करना सो दिवत नाम प्रथम गुणवत. - है । अनर्थ दण्ड का त्याग करना सो अनर्थदण्डत्याग नाम दुसरा गुणव्रत
है । भोग और उपभोग का परिमाण करना सो तोसरा भोगोपभोगपरिमाण:नामक गुणव्रत है। इस प्रकार ये तीन गुणव्रत हैं ।। २५ ॥
' माथा- सामाइयं च पढमं विदियं च तहेव पोसहं भणियं ।
तइयं च अतिहिपुजं चइत्थ सल्लेहणा अंते ॥ २६ ॥ छाया- सामायिकं च प्रथम द्वितीयं च तथैव प्रोषधः भणितः ।
तृतीयं च अतिथिपूजा चतुर्थं सल्लेखना अन्ते ॥ २६॥
अर्थ-राग द्वष छोड़कर सब जीवों में समता भाव रखना सो सामायिक नाम
पहला शिक्षाव्रत है । अष्टमी चतुर्दशी आदि पर्व दिनों में पाप का त्याग कर प्रोषधसहित उपवास करना सो प्रोषधोपवास नाम दूसरा शिक्षाव्रत है।
मुनि त्यागी आदि को आहारादि देना सो अतिथि सत्कार नाम तीसरा ~ शिक्षाव्रत है। अन्त समय में काय व कषायों का कृश करना सो सल्लेखना "नाम चौथा शिक्षाव्रत है ॥ २६ ॥