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[ ३४ ] अर्थ-- आयतन, चैत्यगृह, जिनप्रतिमा, दर्शन, रागरहित जिनबिम्ब, जिनमुद्रा,
आत्मा के प्रयोजनरूप ज्ञान, देव, तीर्थ, अरहन्त और गुणों से पवित्र दीक्षा ये ग्यारह स्थान जैसे अरहन्त भगवान् ने कहे हैं उनको यथाक्रम से जानो ॥ ३-४॥
गाथा-मणवयणकायदव्वा आयत्ता जस्स इंदिया विसया।
आयदणं जिणमग्गे णिहिटुं संजय रूवं ॥५॥ छाया- मनोवचनकायद्रव्याणि आयत्ताः यस्य ऐन्द्रियाः विषयाः।
आयतनं जिनमार्गे निर्दिष्ट संयत रूपम् ॥५॥ अर्थ- मन वचन काय रूप द्रव्य और पांच इन्द्रिय के विषय जिसके आधीन हैं
ऐसे संयमी मुनि के रूप (देह) को जैनशास्त्र में आयतन कहा गया है ॥५॥
गाथा-मय राय दोस मोहो कोहो लोहो य जस्स आयत्ता।
पंचमहव्वयधारी आयदणं महरिसी भणियं ॥६॥ छाया- मदः रागः द्वषः मोहः क्रोधः लोभः च यस्य प्रायत्ताः।
पंचमहाव्रतधारी आयतनं महर्षिः भणितः ॥६॥ अर्थ-मद (घमण्ड ), राग, द्वेष, मोह, क्रोध और लोभ जिसके बस में होगये
हैं और जो पांच महाव्रतों को धारण करता है, ऐसा महामुनि धर्म का आयतन अर्थात् निवास स्थान कहा गया है ॥ ६॥
छाया
गाथा- सिद्धं जस्स सदत्थं विसुद्धझाणस्स णाणजुत्तस्स । सिद्धायदणं सिद्धं मुणिवरवसहस्स मुणिदत्थं ॥ ७ ॥
विशुद्धत्यानय ज्ञानयुक्तस्य । सिद्धायतनं सिद्धं मुनिवरवृषभस्य मुनितार्थम् ॥ ७॥ अर्थ- विशुद्ध अर्थात् शुभध्यान करने वाले, केवल ज्ञानसहित और मुनियों में श्रेष्ठ,
जिसके शुद्ध आत्मा की सिद्धि हो गई है, ऐसे समस्त पदार्थों को जानने वाले केवल ज्ञानी को सिद्धायतन कहा है ॥ ७ ॥