Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 14
________________ अष्ट प्रवचन माता सज्झाय निश्चय करण रुचि थई, समिति गुप्ति धरी साध । परम अहिंसक भाव थी, आराधे निरुपाधि॥८॥ शब्दार्थ-निश्चय करण रुचि-निश्चय नय से सिद्धि करने की रुचि । निरुपाधि-उपाधि-रहित । ___भावार्थ--निश्चय से साध्य की सिद्धि करने के इच्छुक मुनि, समिति एवं गुप्तिको धारण करे और उत्कृष्ट अहिंसक भावोंसे निरुपाधि (उपाधि रहित) भाव को आराधे। क्योंकि पुद्गलों की आसक्ति और विभाव-दशा ही वास्तव में आत्मा की हिंसा है । समता की प्राप्ति और आत्मानन्द ही अहिंसा का परम शुद्ध स्वरूप है। परम महोदय साधवा, जेह थया उजमाल । श्रमण भिक्ष माहण यति, गाउं तस गुणमाल-६ शब्दार्थ--परम महोदय-मोक्ष । जेह-जो। उजमाल-उद्यमशील । बबउसकी । गुणमाल-गुणों की माला। भावार्थ--परम महोदय अर्थात् मोक्ष की साधना करने के लिये जो उद्यमशील हैं, ऐसे श्रमण, भिक्षु , माहण, यति, आदि की गुणमाला गाऊंगा । तपस्या करने में श्रम करने वाला श्रमण, शुद्ध भिक्षा लेने वाला भिक्षु , किसी भी प्राणी को मन हणों, मत हणो, का उपदेश देने वाले और स्वयं छकाय के जीवों की दया पालने वाले माहण, उठना, बैठना, बोलना, चलना, आदि क्रियायें संयम (यतना) पूर्वक करनेवाला इन्द्रियजयी यती कहलाता है। भावार्थमें सारेनाम याविशेषण एक है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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