Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 54
________________ मनोगुप्ति की ढाल ४५ यदि कदाचित् शारीरिक और मानसिक परिस्थिति के वश आगमोक्त विधि से अपवादों का सेवन करना पड़े तो भी उसको हेय समझते हैं कर्मों के उदय वश जो अपवाद-प्रवृत्ति हो जाती हैं उन कर्मों की निंदा करते हैं । अर्थात् उत्सर्ग मार्ग पर क्यों चलने की अभिलाषा रखते हैं ।--११ साध्य=सिद्ध निज तत्वता रे, पूर्णानन्द समाज । 'देवचन्द्र' पद साधतां रे नमीये ते म निराजोरे--मनि-१२ भावार्थ --पूर्णानन्द मयी निजतत्वता रूप साध्य, जिनको सिद्ध हो गया है, अथवा जो उसकी साधना में लगे हैं, उन मुनि महाराजों को श्री देवचन्द्र जी नमस्कार करते हैं। --१२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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