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ज्ञानार्णव में अष्ट प्रवचनमाता
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जीव रहित पृथ्वी पर मल, मूत्र, श्लेष्मादिक को बड़े यत्न से (प्रमादरहिततासे) क्षेपण करने वाले मुनि के उत्सर्ग समिति होती है ।
राग द्वेष से समस्त संकल्पों को छोड़कर जो मुनि अपने मन को स्वाधीन करता है और समता भावों में स्थिर करता है तथा-सिद्धान्त के सूत्र की रचना में निरन्तर प्रेरणारूप करता है उस बुद्धिमान मुनि के सम्पूर्ण मनोगुप्ति होती हैं ।
भले प्रकार संवररूप ( वश ) करी है वचनों की प्रवृति जिसने ऐसे मुनि के तथा समस्यादि का त्याग कर मौनारूढ़ होने वाले महामुनि के वचनगुप्ति होती है ।
स्थिर किया है शरीर जिसने तथा परिषह आजाय तो भी अपने पर्यकासन से ही स्थिर रहै, किंतु डिगे नहीं उस मुनि के ही कायगुप्ति मानी गई है, अर्थात् कही गई है। ___ पांच समिति और तीन गुप्ति ये आठों संयमी पुरुषों की रक्षा करने वाली माता है तथा रत्नत्रय को विशुद्धता देने वाली हैं इन से रक्षा किया हुआ मुनियों का समूह दोषों से लिप्त नहीं होता । ( अष्टादश प्रकरण श्लोक ३ से १६ )
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