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स्वरूपसमाधिनिष्ठ अप्रमत्तअध्यात्म योगी श्री लाभानन्द जी
अपरनाम आनन्दघनजी विरचित
पांच समिति---ढालो १ इर्या-समितिःदोहा- पंच महाव्रत आदरी, आतम करे विचार । अहो ! अहो ! हुँथयो प्रत्यक्ष, धन-धन मुझ अवतार ॥ १॥
__ ढाल-१ चितोडा राजा...ए देशी... विनति अवधारो रे, इरियाए चालो रे
शक्ति संभालो रे, आत्म स्वभावनी रे, १ इरिया ते कहिये रे, सुमति सुभेट लहिये रे,
(निज लक्ष गहिये रे, गमनागमन महि रे) २ सुमति जब भाली रे, तब लागी प्यारी रे, __ पुंठ तव वाली रे, कुमति संगथी रे. ३ द्रव्यथी पण सार रे, किलामणा लगार रे, __ रखे नवि ऊपजे रे, हवे परप्राण ने रे ४ मुनि मारग चालो रे, द्रव्य-भावसं म्हालो रे, __ आतम उगारो रे, भव-दव-चक्रथी रे ५ एम मुनिगुण पामी रे, परभावने वामी रे,
कहे हवे स्वामी रे, आनन्दधन ते थयों रे ६
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