SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ स्वरूपसमाधिनिष्ठ अप्रमत्तअध्यात्म योगी श्री लाभानन्द जी अपरनाम आनन्दघनजी विरचित पांच समिति---ढालो १ इर्या-समितिःदोहा- पंच महाव्रत आदरी, आतम करे विचार । अहो ! अहो ! हुँथयो प्रत्यक्ष, धन-धन मुझ अवतार ॥ १॥ __ ढाल-१ चितोडा राजा...ए देशी... विनति अवधारो रे, इरियाए चालो रे शक्ति संभालो रे, आत्म स्वभावनी रे, १ इरिया ते कहिये रे, सुमति सुभेट लहिये रे, (निज लक्ष गहिये रे, गमनागमन महि रे) २ सुमति जब भाली रे, तब लागी प्यारी रे, __ पुंठ तव वाली रे, कुमति संगथी रे. ३ द्रव्यथी पण सार रे, किलामणा लगार रे, __ रखे नवि ऊपजे रे, हवे परप्राण ने रे ४ मुनि मारग चालो रे, द्रव्य-भावसं म्हालो रे, __ आतम उगारो रे, भव-दव-चक्रथी रे ५ एम मुनिगुण पामी रे, परभावने वामी रे, कहे हवे स्वामी रे, आनन्दधन ते थयों रे ६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy