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________________ पांच समिति-तालो २ भाषा-समितिःढाल २ राय कहे राणी प्रते, सुणो कामिनी......ए देशी बीजी समिति सांभलो, जयवन्ताजी ___ भाषा की इण नाम रे गुणवन्ताजी ! भाषे भाषण स्वरूप नुज०, रूपी पदारथ वाम रे गु० १ निज स्वरूप रमणे चड्या ज० नवि परनो परचार रे गु० भाषासमितिथी सुख थयुं ज०, ते जाणे मुनि सार रे गु० २ ज्ञानवन्त निज ज्ञानथी ज०, अनुभव भाषक थाय रे गु० भाषासमिति स्वभावथो ज०, स्व-पर विवेचन थाय रे गु० ३ हवे द्रव्यथी पण महामुनि ज०, सावध वचननो त्याग रे गु० सावध विरम्या जे मुनि ज०, ते कहिये महाभाग रे गु० ४ पर-भाषण दूरे करी ज०, निज स्वरूप ने भाष रे गु० आनन्दघन पद ते लहे ज०, आतम ऋद्धि उल्लास रे गु० ५ ३ एषणा-समिति; ___ ढाल ३ राग़-बंगलो राजा नहीं नमे......ए देशी त्रीजी समिति एषणा नाम, तिणे दीठो आनन्दघन स्वाम चेतन ! सांभलो. जब दीठो आनन्दघन वीर, सहज स्वभावे थयो छे धीर गयो आमलो- १ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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