Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 95
________________ पांच समिति-ढालो वीर थई अरि पुंठे धाय, अरि हतो ते नाठो जाय चे० वीररी सन्मुख कोई न थाय, रत्नत्रयसं मलवा जाय चे० २ अरिनुबल हवे नथी कांइ रेष, निज स्वभावमांम्हाल्यो विशेष चे० निरखण लागो निजघरमांय, तब विसामो लीधो त्यांय चे० ३ हवे परघरमां कदीय न जाऊं, पर ने सन्मुख कदीय न थाऊंचे० एम विचारी थयो घर राय, तव परपरिणति रोती जायचे. ४ मुनिवर करुणा-रस भण्डार, दोष रहित हवे ले छे आहार चे० द्रव्य थकी चाले छे एम, परपरिणति नो लीधो नेम चे ० ५ द्रव्य-भावसु जे मुनिराय, समिति स्वभाव मां चाल्या जाय चे० आनन्दधन प्रभु कहिए तेह, दुष्ट विभावने दीधो छेह चे० ६ ४ आदान-निक्षेपन--समितिः-- ढाल (४)जगत गुरु हीरजी--ए देशो चौथी समिति आदरो रे, आदान-निखेवणा नाम आदान ते जे आदर करे रे, निज स्वरूप ने तेमस्वरूप गुण धारजो रे, धारजो अक्षय अनन्त भविक ! दुख वारजो रे १ निखेवणा ते निवारवु रे, पर-वस्तु वली जह तेह थकी चित्त वालवरे, करवा धर्मसु नेह, स्व २ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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