________________
पांच समिति-ढालो
सुमतिना गुण प्रगटपणे रे, में तो लीधा उपयोग मांय रे. कुडी० १५ सांभल सुमतिना गुण कहुँ रे, जे अमल अखण्ड कहेवाय रे, कुडी० स्थिरतापणु समति मां घणु रे, तुझ मां तो अस्थिरता समाय रे कुडी० १६ तारा सुख तो में हवे जाणिया रे, छे किंपाक-फल सम हाल रे कुडी० तेथी ते विभाव कहेवाय छ रे, पुण्य-पाप नाटक नो ख्याल रे. कुडी० १७ ज्ञानो एहने सुख नवि कहे रे,, सुख जाण्यु में एक स्वभाव रे, कुडी० तारी पुंठे पड्या ते आंधला रे, भव कूपमां थया गरकाव रे, कुडी० १८ तारूँ स्वरूप में बहु जाणियुरे, जड़ संगे तुजड़ कहेवाय रे; कुडी० जड़पणु प्रगट में जाणियु २, तु तो पर पुद्गल माँ शमाय रे कुडी०१६
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org