Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 99
________________ पांच समिति - ढालो सिद्ध जीवोथी अनन्त गुण का रे, म्हारा घरमा जे चेतनराय रे, सुधा० ते सघला म्हारे वश थई रह्या रे, तो तुमथी छोड़ी केम जवाय रे. सुधा० ११ तब मुनिवर कहे कुमति सुणो रे, तारू' स्वरूप जाण्युं दगाबाज रे, कुडी कुमति जी ! तारा स्वरूप मां जिम तु मगन छे रे, म्हारा स्वरूपे थयो हुं आज रे. कुडी० १२ मारू स्वरूप अनन्त में जाणियु रे, ते तो अचल अलख कहेवाय रे, कुडी ० सुमति थी स्वभाव - घरे रमु रे, तारा सामुं जोयु केम जाय रे, कुडी० १३ तारे- म्हारे हवे हवे नहिं बने रे, तुम तुम्हारे घरे हवे जाओ रे, कुडी ० आज लगी हु बालपणे हतो रे, हवे पंडित वीर्य प्रगटाय रे. कुडी ० १४ - सुमतिसु में आदर मांडियो रे, ए तो बहु गुणवन्ती कहेवाय रे, कुडी० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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