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पांच समिति- -ढालो आदर करवो निज स्वभावनो रे, ए तो अकल स्वरूप कहेवाय रे. सुधा० २ पर पुद्गल मुनि परठवे रे, विचार करी घट मांय रे, सुधा० लोक संज्ञा ने वली परिहरे रे, गतिचार पछी वोसराय रे सुधा० ३ अनादिनो संग वली जे हतो रे, तेनो हवे करे मुनि त्याग रे, सुधा० विकल्प-संकल्प ने टालवा रे, चली जेह थया उजमाल रे सुधा० ४ पर आकर्षण मुनि परठवे रे, ते जाणीने अनाचार रे, सुधा० आचार ने वली मुनि आदरे रे, कर्ता कार्यस्वरूपी थाय रे सुधा० ५ खट्-द्रव्य नुजाणपणु कारे, जेणे जाण्यो आप स्वभाव रे, सुधा० स्वभावनो कर्ता वली जे थयो रे, ते तो अनवगाही कहेवाय रे, सुधा०६
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