________________
पांच समिति-ढालो
सुमति सुहवे मुनि म्हालता रे, चालता समिति स्वभाव रे, सुधा० कुमति सुदृष्टि नवि जोड़ता रे, वली तोड़ता जेह विभाव रे सुधा० ७
उपसंहार पर परिणति कहे सुण साहिबा रे, तमे मुझने मूकी केम रे, सुधा० कहो मुनि कवण अपराध थी रे, मुझने छंछेडी एम रे. सुधा० ८ में म्हारो स्वभाव नवि छांड़ियो रे, नथी म्हारो कांइ विभाव रे, सुधा० पंचरंगी जे म्हारू स्वरूप छे रे, ते ने आदरू छु सदाकाल रे सुधा०६ वर्ण गंध रस फर्स छोड नहिं रे, तो श्यो अवगुण कहेवाय रे. सुधा० कदि अवर स्वभाव न आदरू रे, सडण पडण विधंस न छंडाय रे सुधा० १०
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org