________________
पांच समिति-ढालो
धर्म नेह जब जागियो रे, तब आनन्द जणाय प्रगट्यो स्वरूप विषे हवे रे, ध्याता ते ध्येय थाय, स्व० ३ अज्ञान व्याधि नसाडवा रे, ज्ञान- सुधारस जह आस्वादन हवे मुनि करे रे, तृप्ति न पामे तेह, स्व० ४ स्वरूपमा मुनिवरा रे, समितिसु धर स्नेह सुमति-स्वरूप प्रगटावीने रे, दीधो कुमतिनो छेह, स्व० ५
काल अनादि-अनन्त नो रे, हतो सलंगण भाव ते पर पुदगल थी हवे रे, विरक्त थयो स्वभाव, स्व० ६ द्रव्य भाव दोय भेदथी रे, मुनिवर समिति धार
आनन्दधन पद साधशे रे, ते मुनि गुणभण्डार, स्व० ७ ५ पारिठावणिया समितिः--
बाल-५-रूडा राजवी, ए देशी पंचमी समिति मुनिवर ! आदरो रे, उन्मारगनो परिहार रे, सुधा साधु जी ! मुनि मारग रूडी परे साधजो रे, पर छोड़ी ने निज संभार रे. सुधा० १ पारिठावणिया नामे वली जे का रे, ते तो परिहरवो परभाव रे. सुधा०
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org