Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 72
________________ अष्ट प्रवचन माता सज्झाय देवचन्द अरिहा आण विचर्यो विस्तरीजस संपदा । नीग्रंथ वंदन स्तवन करतां परममंगल सुख सदा ।। भावार्थ--इस प्रकार द्रव्य भाव से समिति गुप्ति से युक्त मुनिराज निर्मोही निर्मल और विशुद्ध आत्मतत्त्व की साधना में तत्पर रहते हैं देवों में चन्द्रके सदृश अर्हन्त भगवान की आज्ञा में उनके विचरने से यश सम्पदा का विस्तार हुआ निग्रन्थों को बंदना-स्तवना करने से सर्वदा परम मंगल सुख प्राप्त होगा। इति श्री पण्डित देवचन्द्र जी विरचित "अप्ट प्रवचन माता" की सज्झाय मूल और भावार्थ सहित सम्पूर्ण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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