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परिष्ठापनिका समिती की सज्झाय ५-अजतनाइ संयम ने बाधकपणु थाइ', आत्म गुणनी विराधना थाई, प्रभु आणा विराधक थाइ मात्रै उपधि आहार मुनि परठों, ते आगल 'लाभालाभ जोइनें ।
६-आहार बध्यो होइ तारें मुनि परठों अने पोताने कोठे अप्रमादी पणे शरीर ने अरागें आहार मूर्छाबिना वावरवो ते पण धीर मुनि ने अपवाद ते व्यवहारे परिठावण जाणवू। ____७-वलि द्रव्य थी कोई देखें नहीं इत्यादि दूषण तजी ने राग द्वेष वरजीर्ने विधिसहित परठों, स्या माटे कोई देखे तो लघुता पणु थाई।
८-कल्पातीत यथालंदी कल्प वाला मुनी वलि जिनकल्पी, तेहने तो आहारादिक परठववा पणु नथी एक नीहार परठवणा छइ'; ते पण अलप छ।
-रात्रि समें मूत्रादिक परठवें ते मांडला मांहे विधिसहित, थविरकल्पी नो ए व्यवहार छ', ग्लान मंदवाडीया ने कामे पण ए रीत छ
१०-ए द्रव्य परिठावणा कही हवे भावे परठवे ते जे परणाम ने बाधक थाइ ते मादकता बिना द्वष रहित सर्व विभाव दशा ने परठवें ।
११-आत्म परिणति तत्वमई करें विभाव तर्जे द्रव्य थी समीति पण भावसारू धरें, ए मुनि नो स्वभाव छ ।
१२-पांच समिति समिता, परिणाम थी क्षमा ना कोश ते भण्डार छ रोस पण नथी, भावनाई पवित्र छ, संयम साधना सकल गुण नी पुष्टी करें ।
१३-साध्य ना रसिया आत्मतत्वे तन्मयो छ, निःकपट पणे उछरंग धरता; योग १ क्रिया २ फल ३ भाव ४ ए ४ थी ठगाई ही ए अवंचकता; शुद्ध अनुभव सुखदाइक छ जेहने ।
१४--प्रभु आणा युक्त ज्ञानी दमी निश्चय थी इंद्री निग्रहें युक्त देवचन्द्र जी कहैं छ एहवा निग्नथ ते तत्व माहरा गुरू छ ।
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