Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 84
________________ काया गुप्ति की सज्झाय ७४ ५-~-जिहां लगे चल तिहा लगें कर्म बंध इम भगवती सूत्रों कह्यो ते सारू माहण जे मुनी ते आत्म तत्व में से उजल ध्यान ने संगे रमें छ । ६-आत्म धर्म नो वीर्य तेज सखाइ छे एवीयं अचल छे सेहज नु छ अप्रयासो छे त परभाव ने सखाई किम थाइ ए दीपाइ मुनि गुणना मंदिर थाई। ७-आत्म वीर्य थी गुण प्रगटें ते कहे छ खति मुत्ति ऋजुता अकिंचनी शौच ब्रह्म इत्यादि गुण उपजे मात्रै विषम परिसह नी फोज हटाववा ए वीर्य परम सौंडीर ते हस्ति वा सिंह सरिखु छ। ___--कर्म पडल समुह न टालवा रसिया आत्म ऋद्धि समृद्धिई भर्या देव मां चन्द्र तुल्य प्रभु आणा पालता मोटे गुणे वध्या मुनि ने गंदो । . शिक्षा रूप सज्झाय १--धर्म धुरंधर मुनि ते कहिइ जे ज्ञान चारित्र भर्या अने वलि इंद्रीना भोग तजी आत्म सुख ने भज्या भव नंधिखाणा थी उदवेग पाम्या। २--द्रव्य थी भाव थी शुद्ध श्रद्धा धरी शंकादि दोष तजी ने कारण योगें कार्य निपजे एहवां साधन आदरी नई साध्य पर्दे संतोष धरी। ३--गुण पर्याइ वस्तु ने परखता थका ग्रहण १ आसेवन २ ए बे शिक्षा ना मंडार छ आत्मा नो परणति आत्म शक्ति स्वरूों परणमोझे पण तेनो विवहार करता थका विचरें। ४-लोक संज्ञारूप दुर्गछा वारता संयम वृद्धी करता, मूलगुण उत्तरगुण मां नजर राखता, आत्मशुद्धि धरता । ५-पोते गीतारथ छे अथवा गीतारथ नी नीष्टाई विचरता योग ३ वश्य करीने नव-नवा आगम भणता थका शुद्ध उपयोगे रह ६-द्रव्य भाव आश्रव रूप मेल टालता शुद्ध संयम पालता, रखरी मुनि नी क्रिया करता थका, कर्म विकार ने गालता । For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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