________________
१--इरिया समिति सज्झाय
१ प्रथम महाव्रतनी भावना कहे छ, संवर ने कारण कही छे, समतारस गुण - घर। हे मुनि इर्या समिति संभारो ! जेथी आश्रव थाई, एहवी -काय योग नी चपलता दुष्ट छ, ते वारो।
२...काय गुप्ति निश्चे थकी, ते व्यवहारे प्रथम समिति छ, आगम रीते चालवु ते इर्या समिति कहीइं।
३...ज्ञान ध्यान सझाय मां, मुनि बैठा छ थिरपणे तेनेस्य कारणे चपलाइ थाई, अनुभव ध्यान रस नुं सुख रूप मुनि ने राज्य छई। ____४ :मुनि उपासरा थी ४ कारणे बाहर निकले छ देहरे १ विहार २ गोचरी ३थंडीले ४
५-उत्कृष्ट चारित्र करी संवरना धरनारा, केवलीई दीठा ते सर्व पदारथना जाण तेथी पवित्र समता रूचि उपजे मात्रै ते पदार्थज्ञान मुनि ने इष्ट छइ ।
६--ज्ञान दिशाई भाव नी थिरताइ राग बघे, अनइ ज्ञान विना प्रमाद वधइ माटें वीतरागपणाने इच्छता थका मुनि आणंद मां विचरें।
७--आ शरीर संसार नु मूल छ, तेनी पुष्टि रूप आहार छे, यावत् अयोगी पणु न थाई त्यां सुधी अनादीकाल नो आहार छई।
८--प्रक्षेप आहारे निहार छ ए शरीर नो धर्म छ मात्रै धन्य छ अशरीरी सिद्धने जिहां निश्चल पणु छ ।।
--पर जे आहार, तेनी परणतीई चपलाई करइ छ उनमत्तपणु मार्ट केवारे ए आहार छडास्यें, इम विचारी ने कारणे कहतां कारण मुनि गोचरी करे छ।
१०--समतावंत दयालताई निष्पृह शरीरें निरागपणइ गृधता रहीतगोचरी करें । हस्ती चाल्ये चालता महाभाग्य ना धणी मुनि विचरे छई। . ११-परम आनंद रस अनुभवता, स्वाभाविक गुणे रमता, देव मां चंद्र तुल्य ए मुनि बंदतां भवसमुद्र नो पार पामीइ ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org