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परिशिष्ट
अष्ट प्रवचन माता सज्झाय
बालावबोध-टबा रूपी गुजराती अर्थ दोहा
१... पुण्य करणी रूप कल्पवृक्षनी घटा जिहां प्रगटी छें एहवी उत्तरकुरूक्षेत्र नी भूर्मिका रूप, वरते सुन्दर पृथ्वी; तेनें विषे अध्यातम रस रूप चन्द्रकला नां किरणरूप जिनवाणी ने न छू ।
२...सार ते रूड़ा श्रमण जे मुनि तेना गुण तेनी भावना ना अवदात ते कारण एवी प्रवचन माता, ने देशीइ गाइस्यु' ।
३... जिम माता पुत्र ने शोभनकारी तिम ए८ प्रवचन माताइ मुनि शोभे चारित्र तँ गुण वधारे; मुक्ति सुख आपे एहवी प्रवचन माता छे ।
४ - भाव थी अयोगी ते सिद्धता करण रूचि मुनि गुप्ति धरें, जो गुप्ति ई रही सकें नहीं तो समिति विचरे ।
५ – निश्चय थी एक संवर मई गुप्ती कही छई अडने संवर ते निर्जरा रूप छे ते पण व्यवहार थी समिति थी हुई ।
६ - द्रव्ये द्रव्य थी चारित्र भावे भाव थी चारित्र द्रव्य यो क्रिया अने भाव थी ज्ञान दृष्टि, ए रीतें मुनि मुक्ति संपदा पायें ।
७—आत्म गुण ना प्राग्भाव थी, साधक नो जे परिणाम ते सम
कही छै मुक्ति थानक पार्मे तारें साध्यनी सिद्धि थाइ ।
८- निश्र्चे चारित्ररूचि थई, समिति गुप्तिवंत साधु परम् अहिंसक भावथी निरूपाधि पणुपामें ।
६ - मोक्ष पद पामवा; जे उजमाल थया, मुनि ते कर्मने भेदे; नाम दयानंत जे मुनि ना गुण गाऊँ छु ।
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