Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 62
________________ ढाल नवमी "मुनि गुणस्तुति _ "सुमति चरण कज आतम अरपणा" एदेशी" धर्म धरंधर मुनिवर Xसेगिये, नाण चरण सम्पन्न । सुगुणनर। इद्रिय भोगतजी निज सुखभजी, भवचारक उदविन्न सु०प०१। शब्दार्थ-सम्पन्न सहित । भवचारक संसार रूपी केद। उद्विग्न= खेद पाये हुए। भावार्थ--हे सद्गुणी मानव ! धर्म की धुरा को धारन करनेवाले, ज्ञान और चारित्र से युक्त, इन्द्रियों के सुख को छोड़कर आत्मिक सुख के भोक्ता संसार रूपी चारक ( जेल ) से खिन्न मुनिजनों की सेवा करो ॥ १ ॥ द्रव्य भाव साची श्रद्धा भरी, परिहरी शंका दोष । सु० । कारण कारज साधन आदरी,साधे*साध्य संतोष सु०१२ शब्दार्थ-श्रद्धा-विश्वास । संतोष संतोषपूर्वक । भावार्थ-सुदेव, सुगुरु, सुधर्म पर सच्ची श्रद्धा होना द्रव्य श्रद्धा है और अपनी आत्मा ही देव, आत्मा ही गुरु और आत्मा ही धर्म है, ऐसी श्रद्धा होना भाव श्रद्धा है । शंका, कांक्षा आदि दोषों को टाल करके मुनि दोनों प्रकार की श्रद्धा धारण करते हैं । श्रद्धा प्राप्ति के चार कारण हैं, १ निमित्त कारण, २ उपादान कारण, ३ असाधारण कारण, ४ और अपेक्षा कारण । निमित्त कारण अनेक हो सकते हैं-जिन दर्शन जिनोपदेश श्रवण आदि २ । उपादान कारण केवल अपनी आत्मा ही है । असाधारण कारण वह है, जिस योगाचारण से आत्मा का xसलहियै Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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