________________
अष्ट प्रवचन माता सज्झाय
शब्दार्थ- सद्दहणा श्रद्धा। आगम शास्त्र की। अनुमोदना=प्रशंसा । आयति भविष्यकाल में।
भावार्थ...चाहे आप पालन नहीं कर सकता हो फिर भी आगमों के प्रति निष्ठा तो पूरी रखे। तथा कोई पूर्णतया पालन करनेवाला हो; उसकी अनुमोदन (प्रशंसा ) करता रहे ।ये दो बातें संयम मार्ग में बड़ी गुण करनेवाली है। आगमों की निष्ठा से मुनि क सम्मुख आदर्श सही रहेंगा। तथा गुणीजनों की अनुमोदना से अपनी कमजोरियां हटाने की प्रेरणा मिलेगी। मुनि के वेष तथा वेषोचित क्रियाओं से भी महान लाभ है । अपने-आप में भाव चरित्र नहीं है । यह स्पष्ट समझते हुए भी द्रव्य क्रियायें करते रहने से भविष्य में भाव चारित्र आने की सम्भावना रहती है । ११ । दुक्करकारी थी अधिका कह्या, वृहत्कल्प व्यवहार ।सु०। उपदेशमाला भगवई अंग में, गीतारथ अधिकार सु०।१२।०ध।
शब्दार्थ...दुक्करकारी-कठिन क्रिया करनेवाले । अधिका श्रेष्ठ । गीतार्थ= ज्ञानी । अधिकार-वर्णन ।
भावार्थ --बृहत कल्प-व्यवहार, भगवती; तथा उपदेशमाला आदि में जहां गीतार्थ का अधिकार है; वहां मास-मास की उतकृष्ट तपस्यायें तथा दुष्कर क्रियायें करनेवालों से भी अल्पक्रिया वाले गीतार्थ मुनियों को श्रेष्ठ गिनाया है। अज्ञानी पुरुष जो कर्म अनेक वर्षो में खपाता है; उससे भी अधिक कर्म ज्ञानी क्षण मात्र में खपा देता है। भाव चरण थानक फरस्या बिना, न हुवे संयम धर्म ।सु०। तो शाने झुठ ते उच्चरे-जे जाणे प्रवचन मर्म ।सु ०।१३।१०।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org