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मुनि गुण स्तुति की ढाल भावार्थ-विभाव परिणति की निंदा करते हुये, स्वभाव परिणति को धर्म बतलाते हुये, योगाभ्यास संबंधी ग्रन्थों के भावों पर प्रकाश डालते हुये, मुनि अपने पूर्व संचित कर्मों को नाश करते हैं। -१८ अल्प क्रिया पण उपकारी पणे, ज्ञानी साधे हो सिद्ध । सु० । देवचन्द्र सुविहित मुनि वृन्दने, प्रणम्या सयल समृद्ध |सु०१६धा
शब्दार्थ- अल्यक्रिया-थोड़ी क्रिया करने वाले। सुविहित=अच्छे । सयल= सारी। ___ भावार्थ-स्वयं अल्प क्रिया करने वाले होते हुये भी ज्ञानी मुनि अपने सदुप देशों द्वारा परोपकार करते हुये मुक्ति को साध लेते हैं। सुविहित (सदनुष्ठानी) मुनि समूह को प्रणाम करने से ही आत्मा के गुण रूपी सकल समृद्धि प्राप्त हो जाती है। यों श्री देवचन्द्रजी महाराज कहते हैं।-१६
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