Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 36
________________ आदान भंड निक्षेपणा समिति की २७ भावार्थ=आगम वाक्यों को प्रमाण रूप मानते हुए निजी आत्म तत्त्व के अभिलाषी मुनि परिग्रह के सर्व बंधनों को तोड़कर केवल शुद्ध धान की आकांक्षा रखते हैं ।-३ संवर पंच तणो ए भावना, निरुपाधिक अप्रमाद । सर्व परीग्रह त्याग असंगता, तेहनो ए अपवाद–४ स० शब्दार्थ-निरुपाधिक = उपाधि रहित । असंगता - राग के बन्धन से रहित । भावार्थ-अपरिग्रह आदि पंच संवर द्वारों को यह भावना है कि निरुपाधिक ( उपाधि-उपधि-रहित ) और अप्रमादी बनना । किसी भी वस्तु का किंचित् मात्र अंश भी ग्रहण न करना, उत्कृष्ट असंगता है। इस उत्सर्ग मार्ग के अपवाद स्वरूप यह चौथी समिति है। इससे मुनि को चौदह उपकरणों के रखने की अनुमति दी गई है।-१४ उपकरण हैं (१) पात्र गृहस्थों के घर से भिक्षा लाने के लिये काष्ठ या मिट्टीका पात्र ।। (२) पात्र बन्धन पात्र को बांधने का वस्त्र । (३) पात्र स्थापन =पात्र रखने का कपड़ा। (४) पात्र-केसरिका=पात्र पोंछने का कपड़ा। (५) पटल= पात्र ढंकने का कपड़ा । (६) रजस्त्राण= पात्र लपेटने का कपड़ा। (७) गोच्छग=पात्र वगेरह साफ करने का कपड़ा । ऊपर लिखे सात उपकरणों को पात्र निर्योग कहा जाता है। इनका पात्र के साथ संबन्ध है। (८-६-१० ) पछेवड़ी ओढने की चद्दरें तीन । (११) रजोहरण =ऊन आदि का बना हुआ ओघा । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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