Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 47
________________ ३८ अष्ट प्रवचन माता सज्झाय शब्दार्थ - रात्रे = रातमें । परिश्रवणादि = मूत्र आदि । विधि से बनाये हुये। मंडलठाम = गोलाकार एक निश्चित स्थान । रोग आदि । (विधिकृत ε भावार्थ- स्थविरकल्पी मुनि को जब रात्रिकाल में मूत्रादिक परठना पड़ें तो दिन में विधि सहित बनाये हुये मांडलों (निश्चित स्थान ) में परठे । स्थविर कल्प का यह अपवाद मार्ग रोगी, बाल, वृद्ध मुनियों के लिये है । एह द्रव्य थी भावे परठवे रे, बाधक जे परिणाम । द्वेषनिवारी मादकता बिना रे, सर्व विभाव विराम - १०म० शब्दार्थ - - परिणाम = आत्मा के भाव । मादकता -मद- अहंकार । -- भावार्थ -- उपरोक्त परठना तो द्रव्य से है । भाव से परठना वह है कि आत्मा के गुणों को बाधा पहुंचाने वाले परिणामों का परित्याग करना । द्वेष का तथा सारे विभावों का निवारण करके अहंकार रहित बने अर्थात् सब विभावों से विराम ले ले | Jain Educationa International ग्लानादि == आतम परिणति तत्वमयी करे रे, परिहरता परभाव । द्रव्य समिति पर भावभणी घरे रे, म नि नोएह स्वभाव - ११म. ० शब्दार्थ - - आत्म परिणति = आत्मा के परिणाम | परिहरता = छोड़े । पर भाव भणी = पौद्गलिक भावों को । भावार्थ- पर भावों को छोड़ता हुआ मुनि अपनीआत्म परिणति को तत्त्वमयी कर डाले । किंतु द्रव्य समितियाँ परभाव होते हुये भी उनको धारन करे । भावों की विशुद्धता के लिए द्रव्य समितियाँ का पालन करें यह मुनि का स्वभाव है । x पिण For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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