Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 48
________________ परिठावणिया समिति की ढाल पंच समिति समिता परिणाम थी रे, क्षमाकोष गतरोष । भावन पावन संयम साधता रे, करता गुण गण पोष--१२ म. ___शब्दार्थ-समिता=सहित। क्षमाकोष क्षमा के भंडार। गतरोषद्वेषरहित । पावन पवित्र । पोष=पुष्ट।। भावार्थ - मुनि पांचों समितियों से समित , ( सहित ) क्षमा के भंडार,रोष रहित, पवित्र भावना से संयम को साधता हुआ हुआ आत्म गुणों का पोषण करे। साध्य रसी निज तत्वे तन्मयी रे, उत्सर्गी* निर्माय । योग क्रिया फल भाव अवंचता रे,शुचि अनुभव सुखदाय १३मु० ___ शब्दार्थ-साध्य रसी-मोक्ष के रसिक। निज तत्त्वे आत्मरूप में। उत्सर्ग= निश्चय मार्गी। निर्माय-माया रहित । अवंचता-सरलता। शुचि-पवित्र । भावार्थ-साध्य के रसिक, आत्म तत्त्व में लीन, उत्सर्ग मार्गी, निर्मायी, योग, क्रिया, क्रिया के फल, तथा अवंचन ( सरलता ) भावों से मुनि पवित्र अनुभव रूपी सुख को पाते हैं।-१३ आया जीते जीय+नाणी दमी रे, निश्चय निग्रह युत। . 'देवचन्द्र' एहवा निग्रन्थ जे रे ,ते मारा गुरु तत्त्व-१४ मु० शब्दार्थ-आया =आत्मा। जीत=जीतनेवाला । नाणी=ज्ञानी । दमी=दमन करने वाला। निग्नहरोकना । गुरुतत्त्व= गुरु तत्त्व में । भावार्थ-अपने बाह्य आत्मा को जीतने से जेता, ज्ञानी, दमी, निश्चय नय से इन्द्रियों का निग्नह करने वाले जो निग्नन्थ हैं, वे मुनि मेरे ( देवचन्द्र के ) गुरुतत्त्व में समाविष्ट हैं।-१४ * उ छरंगी +आणाजोत युआ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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