Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 35
________________ ढाल-४ चौथी-आदान भंड निक्षेपणा समिति की "धन जिन शासन मंडन मुनिवरा" ए देशी समिति चौथी रे चिहुं+ गति वारणी, भाखी श्री जिनराज। राखी परम अहिंसक मुनिवरे, चाखी ज्ञान समाज - १ शब्दार्थ-चिहुंगति वारणी=चार गति को रोकने वाली । चाखी-आस्वादन किया सहज संवेगी रे समिति परिणमो, साधवा आतम काज । आराधन ए संवर भाव नो, भव जल तरण जहाज-२ स० शब्दार्थ -सहज संवेगो =स्वाभाविक वैराग्य वाले । परिणमो-धारन करो । भावार्थ-हे सहज संवेगी अर्थात् स्वाभाविक वैराय वाले मोक्षाभिलाषी मुनि ! आत्म कार्य की साधना के लिये समिति-मार्ग में प्रवृत्त हो जाओ। जिनेश्वर ने कहा है कि यह चोथी समिति संवर भाव की आराधना का कारण, भव समुद्र से तरने के लिये जहाज तथा चार गति को रोकने वाली है। अतः परम अहिंसक मुनि समाज ने इसे धारण किया है। १-२ अभिलाषी निज आत्म तत्व ना, साखी घरेx रे सिद्धान्त । नाखो सर्व परिग्रह संग ने, ध्यानाकांखी रे सन्त -३स० शब्दार्थ-संग ने =बन्धन को। ध्याना कंखोध्यान के अभिलाषी । +, चऊ x, साधन x, करि For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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