Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 20
________________ इर्या समिति की ढाल पर परिणति कृति चपलता जी रे, केम छूटशे एह । एम विचारी कारणे जी रे, करे गौचरी तेह ॥ ॥ मु०मु०. शब्दार्थ...पर परिणति कृति चपलता=कर्मों द्वारा की हुई चंचलता । केम = कैसे । छूटगे छूटेगी। एम =ऐसे। विचारी विचार करके। कारणे = क्षुधावेदनी य के उदय होने से। गौचरी-भिक्षा। ___ भावार्थ... मुनि विचार करे कि पुद्गलोंकी परिणति से होने वाली मेरी मानसिक चञ्चलता तथा कायिक चपलता कब छूटेगी ? इससे उसकी मोक्ष के प्रति उत्कट अभिलाषा सूचित होती है । मुनिके लिये आहारादि करते समय रागभाव तो त्याज्य है ही, परन्तु मुनि तो चाहता है कि आहार ही न करना पड़े, ऐसी अवस्था प्राप्त हो वैसे अवस्थाको प्रतीक्षा मेंकेवल क्षुधा निवृत्ति के लिये और संयम तथा मुक्ति के साधन भूत शरीर-निर्वाह के लिये गौचरी करे। देह रक्षा के लिये आहार लेना पड़ता है, यह विचार करके वह गोचरी के लिये जावे, राग भाव से नहीं। क्षमावन्त दयालआजी रे, निस्पृह तनु निराग। निर्विषयी गजगति परे जी रे, विचरे ते महाभाग॥१०॥मु०मु०. शब्दार्थ...निस्पृह =अभिलाषा रहित । निराग =मोह रहित । निर्विषयी = विषयों से रहित । गजगति =हाथो को चाल की तरह मस्त, धीरे धीरे महाभाग =महा भाग्य शाली। भावार्थ-ऐसे उत्कृष्ट भावना वाले मनियों का प्राथमिक धर्म क्षमा है। परीषहोंको समभाव से सहन करने का नाम तो क्षमा है ही, किन्तु अपराधियों के प्रति भी मानसिक क्रोध उत्पन्न न होने देना, उत्कृष्ट क्षमा है । हृदय में छःकाय के जीवों के प्रति दया भाव है, ऐसे क्षमावन्त और दयालु मुनि अपने शरीरपर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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