Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 26
________________ भाषा समिति की ढाल मार्ग से। इन विकल्पों द्वारा अपने आपको पिछान कर मुनि ऐसा उद्यम करे. कि जिससे आत्मगुण प्रगट हो जायें। अत: निज बोध के लिये वाचन करे । और जो ज्ञान प्राप्त हो, उसका परहित में उपयोग करने के लिये धर्मकथा किया करे-८ नय गम भंग निक्षेप थो, स्वहित स्यावाद युत वाणि रे। सोल दस चार गुण सुमली, कहे अनुयोग सुपहाण रे-६ सा० शब्दार्थ...नय =वस्तु को जानने का तरीक़ा । गम=वस्तु के किसी एक धर्म का विवेचन । भंग =प्रकार । निक्षेप--रचना-स्थापना'। स्याद्वाद--कथंचित् सापेक्ष कथन । अनुयोग व्याख्यान । सुपहाण सुप्रधान-श्रेष्ठ। भावार्थ "याख्याता मुति को वागी नय,१ गम,२ भंग, ३शिक्षेप४, और स्याद्वाद ५ से भरी हुई, तथा सोलह, ६ दश७ चार, ८ गुणों वाली होने से व्याख्यान श्रेष्ठ होता हैटिप्पणी--। (१) नय सात हैं । नगम-संग्रह-व्यवहार-ऋजुसूत्र-शब्द-समभिरूढ और एवम्भूत । इन में प्रथम तीन नय व्यवहार और अंतिम चार निश्चय नय कहलाते हैं। तथा द्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक भी कहे जाते हैं। यदि वक्ता एक नय से बोलता हुआ अन्य नयों को मेक्षित रखता है, तब तो वे नय है, नहीं तो नया-भास हो जाता है। (२) गम-वस्तु के अनंत धर्मों में से किसी एक गुण या पर्याय का आंशिक विवेचन करने का नाम गम है।। (३) भंग-प्रतिपादन करने के प्रकार को भंग कहते हैं। जैसे त्रिभंगी-उत्पादव्यय और ध्रौव्य । चौभंगी-क्रोध-मान-माया और लोभ । सप्तभंगी-स्यात अस्ति For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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