Book Title: Asht Pravachanmata Sazzay Sarth
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 29
________________ ढाल-३ तीसरी-एषणा समिति की "मेतारज मुनिवर ! :धन धन तुम अवतार ॥ एदेशी ॥ समिति तीसरी एषणा जी, पञ्च महाव्रत मूल । अणाहारी उत्सर्ग नो जी, ए अपवाद अमूल । मनमोहन मुनिवर ! समिति सदा चित्तधार ॥१॥ अ० शब्दार्थ...एषणा--देख भाल। अणाहारी-आहार न करने की अवस्था । अमूल--अमूल्य । पंच महाव्रत--अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । - भावार्थ--पहली ईर्या समिति में आहार लाने के लिये उपाश्रय से बाहर जाने ग उसके कारणों का वर्णन किया था। परन्तु आहार की गवेषणा-ग्रहणेषणा तथा पासेसणा का सविस्तार वर्णन इस एषणा समिति में ही आयगा। यह एषणा समिति पांचों ही महाव्रतों की मूल है । क्योंकि एषणा न हो तो आहार न हो, आहार न हो तो शरीर न हो, शरीर न हो तो महाव्रतों की साधना भी न हो, इसलिये एषणा समिति को महाव्रत का मूल कहा गया है । मूल उत्सर्गमार्ग से तो अनाहारीपन ही इष्ट है ।उस उत्सर्गमार्ग का आहार ग्रहण रूप अपनाद मार्ग एषणा समिति है । हे मन मोहनमुनिवर ? इस समिति को सदा के लिये अपने मन में धारण करो । चेतनता चेतन तणी जी, नवा परसंगी तेह । तेणे तिणपर सनमुख नवी करेजी, आतम रति व्रती जेह-२ म० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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